फ़ोटोग्राफ़ी

Photography by Kumar Shyam
Photography by Kumar Shyam

आज अरसे बाद खेत गया था। खेत-सा महसूस कर रहा हूं। हल्‍का-हल्‍का सा और खुला हुआ सा। पास कैमरा था। कुछ तस्‍वीरें आपके लिए लाया हूं। देश के अलग-अलग ज़गहों की बहुत-सी तस्‍वीरें दिनभर देखते हैं। तस्‍वीरों में सबकुछ नया दिखता है। बहुत कुछ चिकना नज़र आता है। लेकिन हम उन तस्‍वीरों के ख़ुरदरेपन से अनभिज्ञ रहना चाहते हैं।

मुझे आक बहुत पसंद है। ज़रूरी नहीं कि आक पसंद करने वाला आक-सा हो। मग़र आक-सा होना साधना है। आक होना दरअसल बकौल बडेरे- ‘आक चौने !’ जैसा है। समझ नहीं आया तो कोई बात नहीं। पहली तस्‍वीर आक की है। दूर-दूर तक रेगिस्‍तान और अकेला आक।

नये के बाद पुराने नज़रअंदाज़ हो जाते हैं। होते आएं हैं। कुछ नया नहीं। मग़र पुराने अपना वज़ूद रोपे खड़े रहते हैं। नयेपन का सबकुछ सहते हुए। दूसरी तस्‍वीर बाजरी के पौधे की है। सूरत देखिए और अंदाज़ा लगाइए क्‍या सोच रहा है।