कतरन की गांठ

कविता-कहानियों से बेहद स्नेह है। कुछ कविताएं और कहानियां लिखी भी हैं। लेकिन जब उन्हें लौटकर पढ़ता हूं तो बहुत कुछ छूटा हुआ पाता हूं। लगता है कि बहुत कुछ शेष है। जिसे पाना है। तब तक मैं कवि नहीं हूं। न ही कथाकार। इन श्रेणियों में स्वयं को रखना बहुत चुनौतीपूर्ण है। मैं इसे इतना आसान नहीं समझता। हर समय की अपनी एक कहानी होती है। वह कहानी अनेक आयाम रचती है। अनेक पात्र। और उस कहानी के उजले पक्ष जीवन में सदैव साथ रहते हैं। भले हम कितने ही आगे बढ़ आएं पर वो पल भीतर कहीं अपनी खोह चुन लेते हैं और वहां जीवित रहते हैं। इस पोथी में भी ऐसे ही नाज़ुक एहसास हैं जो भीतर कहीं उपजे और पन्नों पर बेतरतीबी से फैले। जहां निर्मल भाव हैं, मासूम कल्पनाएं और कुछ दिली बातें। और कुछ नहीं। बड़े ही संकोच के साथ मेरे ये निजी पन्ने सौंप रहा हूं। जिस भाव से इन पन्नों को लिखा गया उसी भावबोध से लोकवृत में ये स्वीकारे जाएं। यही मनोरथ। यह पुस्तक मेरी निजी संपत्ति है। जिसमें मेरा आश्चर्यलोक समाया है।

मूल्‍य- 99 रूपए।

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