आज मोहनदास कर्मचंद गाँधी १५० बरस के हो गए. कितना सुंदर है कि इनकी उम्र इतनी लम्बी है. लेकिन कितनी? कितने बचे रह गए हैं गाँधी? शायद इस मुल्क़ में तो बहुत कम. गाँधी केवल सीमित है विश्व पटल पर यह जतलाने तक कि हम गाँधी के वारिस हैं. उनके देश के वासी हैं. पर गाँधी के प्रति विषवृद्धि यथावत है.
आज भी गोडसे को धन्यवाद ज्ञापित किया जा रहा. कृतज्ञ हैं कि उन्होंने गाँधी की हत्या की. पर अफ़सोस गाँधी मरे नहीं. “मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी”. उनके विचार के पोषक एवं प्रतिनिधि को भी मज़बूरन कहना पड़ता है कि हम गाँधी के देश से आए हैं. हाँ, मज़बूती का नाम महात्मा गाँधी.
क्यों नहीं कह पाता आपका साहब कि हम गोडसे के देश से आए हैं?
आप गाँधी से असहमत होकर भी गोडसे से प्रेम नहीं कर सकते. गोडसे हत्यारा है. वह अवश्य देशभक्त हो सकता है किन्तु आदर्श नहीं. प्रशंसनीय नहीं. जिनके लिए है उनको कुछ नहीं कहना. शायद वो भी भावी गोडसे हैं. गाँधी को मारने को तत्पर.
भारतीय इतिहास गाँधी से होकर गुजरेगा. हरमेस. वोह विराट प्रतिमा हैं. अक्षुण्ण. हजारों गोडसे भी उसे विचलित नहीं कर सकते. गाँधी के साथ लड़ सकते हो. बहस कर सकते हो. पर उन्हें ख़ारिज़ नहीं कर सकते.
हम आजीवन गाँधी से प्रेम करेंगे. गाँधी की मानेंगे और उनसे रूठेंगे. लेकिन “गोडसियों” के अनुयायी तो कभी नहीं बनेंगे.
दुःखी हैं बापू. किस मुंह से प्रणाम करें. आपका देश अब वो नहीं रहा. बदल गया है.