कितना ही स्वांग रच लें। मगर किसी असावधान क्षण में वो स्वांग टूट जाता है और स्वाभाविक रूप जग को दिख ही जाता है। अब यह भ्रम भी टूटना ही चाहिए कि मुख्यमंत्री जी ‘योगी’ या ‘संत’ नहीं। वो राजनेता हैं। और इसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को साधने का फ़रेब है भगवा वस्त्र और यह योगी का स्वांग।
भ्रम एक ऐसी चीज़ है जो कभी न कभी तो टूटती ही है। मेरा मानना है कि इसका टूटना बेहतर है। अगर हम भ्रम में हों तो वस्तुस्थितियां धुंधली नज़र आती है। सच से कोसों दूर रहते हैं और सिर्फ़ एक फ़रेब पर भरोसा किए रहते हैं।
कल भी एक भ्रम टूटा जो कि भगवे वस्त्र का है। उसे पहनने के वाले के इर्दगिर्द बुना रहता है। जो व्यक्ति भगवा पहन लेता है तो जन में एक तरह का भाव स्वत: ही स्थापित रहता है कि यह व्यक्ति गुणी, साधु, संत, फ़कीर, नैतिक, सत्यनिष्ठ और शालीनता की मूरत है। हालांकि यह भाव एक मायने में तो सही है लेकिन दूसरे में मायने में इसे यथावत मानना घोर मूर्खता भी और इस वस्त्र के फ़रेब का शिकार होना भी।
कल उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समाचार एजेंसी एएनआई को वक्तव्य दे रहे थे। कुछ असावधानी की वज़ह से कैमरा हिल गया और कैमरे के पीछे कुछ लोगों को बात करते भी सुना गया। इससे बोलते हुए योगी आदित्यनाथ का ध्यान भंग हुआ तो उनके मुख से उन पत्रकारों के लिए अपशब्द निकल पड़े। हालांकि यह वीडियो देश के कई राष्ट्रीय चैनलों पर लाइव टेलीकास्ट हो रहा था तो चला गया सार्वजनिक पटल पर। कैमरामैन ने बड़ी तत्परता से कैमरे को बंद किया मगर तब तक वीडियो लाइव हो चुका था। और यह क्लिप हो गई वायरल।
लोगों ने योगी आदित्यनाथ की जमकर आलोचना की और ट्रोल किया। कहा गया कि अंदर का अजय सिंह बिष्ट ज़िंदा है। मैं तो कहता हूं कि हर इंसान के अंदर इंसान ज़िंदा रहता ही है। कितना ही स्वांग रच लें। मगर किसी असावधान क्षण में वो स्वांग टूट जाता है और स्वाभाविक रूप जग को दिख ही जाता है। अब यह भ्रम भी टूटना ही चाहिए कि मुख्यमंत्री जी ‘योगी’ या ‘संत’ नहीं। वो राजनेता हैं। और इसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को साधने का फ़रेब है भगवा वस्त्र और यह योगी का स्वांग।
मुझे तो कोई हैरानी नहीं हुई। लोग अपने दैनिक जीवन में उस ‘शब्द’ को अनेक बार उपयोग करते हैं। बेहद सहजता से। योगी जी के मुख से भी प्रकट हो गया तो क्या हैरानी? लेकिन हैरानी की वज़ह कुछ और।
गोदी मीडिया के एंकर और योगी आदित्यनाथ के ‘समर्थक’ पत्रकारों ने मोर्चा संभाला और कहने लगे कि यह वीडियो तो एडिटिड है। आखिरी अनमोल शब्द बाद में जोड़ा गया है। और एक पूरी फौज उसे डॉक्टर्ड वीडियो के रूप में प्रदर्शित करने में ऊर्जा झोंकने लग गई। लेकिन था तो असली। इस कड़वे सच को कैसे झुठलाए?
वीडियो लाइव हुआ था। अनेक वीडियो आ गए थे उसी स्थिति के। कोई अंतर नहीं। उसके बावज़ूद यह सीनाजोरी की एडिटिड है तो यह कोरी मूर्खता है और मुंह छुपाने का सबसे बचकाना तरीक़ा।
लेकिन मैं तो कहता हूं साधु-संतों का मान करें। उनका कहा सुनें, मानें भी लेकिन ‘अंधसमर्थक’ न हों। सच को स्वीकारने का स्थान रखें। चित को निर्मल रखें और जगत की अच्छी-बुरी विडंबनाओं को स्वीकारें। राजनीतिक लोगों पर सब भ्रम न लादें। फिर तो टूटने ही हैं। योगी जी बचारे क्या करें?