पहली बार हरियाणा में चुनाव लड़ी रही स्वराज इंडिया ने वैकल्पिक राजनीति की नींव डाली है. दमखम के साथ लड़ रही है. ईमानपत्र जारी कर पांच सालों की कार्यप्रणाली का ब्यौरा दिया है. विरोध के लिए विरोध नहीं. राह भी है. मीडिया में बीजेपी के घोषणापत्र के अलावा चर्चा नहीं होगी. मीडिया ने विपक्ष को ग़ायब कर दिया है. इसलिए उभरते विकल्पों की ओर जनता को ख़ुद ही जाना होगा. कदम बढ़ाना होगा.
योगेंद्र यादव के नेतृत्व में उभरती इस पार्टी के आंदोलन एवं मुद्दे महत्त्वपूर्ण हैं. हरियाणा में इस चुनाव में बेरोज़गारी के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है. डेरा प्रमुख की पैरोल के ख़िलाफ़ एकमात्र बोलने वाली पार्टी स्वराज इंडिया ही थी. इसके अलावा योगेन्द्र यादव को किसान-आंदोलनों में लगातार देखा जा सकता है. कुछ ही राजनीतिक पार्टिंयां बचीं हैं, जो आम जनता से जुड़े मुद्दों पर चुनाव लड़ती हैं. उनमें स्वराज इंडिया काे शामिल किया जा सकता है.
इसके साथ ही नई पार्टी के विकास एवं जनता तक पहुंचने की प्रक्रिया को सीखना हो तो राजनीतिक के नए विद्यार्थिंयों के लिए स्वराज इंडिया की गतिविधियों पर नज़र रखें. शून्य से आरंभ और एक प्रांत की राजनीति में दख़ल. इस प्रयोग को देखना आवश्यक है. आम आदमी पार्टी के उद्भव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके यादव उसकी सफलता के प्रमुख कारण थे. अब वैसा ही प्रयोग हरियाणा की राजनीति में कर रहे हैं.
एक ओर जहां कांग्रेस जैसे बड़ी पार्टी टिकटों के लिए लड़ी रही है तथा आंतरिक फूट का शिकार है वहीं प्रभावशाली विपक्ष की छाप स्वराज इंडिया में देखी जा सकती है. यह सत्य है कि इस पार्टी के पास धनबल एवं प्रचारबल का अभाव है, फिर भी गांव-गांव जाकर लोगों से संवाद कर रहे हैं. पार्टी के उम्मीदवार भी वो व्यक्तित्व हैं, जिनकी पृष्ठभूमि जनसरोकारों से जुड़ी हुई है. जिनका अनेक आंदोलनों एवं सामाजिक कार्यों में योगदान है.
ख़ैर, देखना है इस चुनाव में स्वराज इंडिया कैसा प्रदर्शन करती है. कुछ भी हो, पार्टी जिस ऊर्जा व आत्मविश्वास के साथ लड़ रही है, वह नई राजनीति की झलक देती है. स्वराज इंडिया के लिए खोने को कुछ नहीं है. पाने को सबकुछ.
धारा के ख़िलाफ़ बहने की ज़िद है.
स्वराज इंडिया का ‘ईमान-पत्र’, जिसमें 20 लाख नौकरियां सृजन करने का वादा किया है.