कुछ शहरों की हालत तो इतनी बदतर है कि वर्णन नहीं किया जा सकता. कहानियां सुना करते थे कि फलां दौर में ऐसी महामारी आई थी कि इतने लोग मरे थे. अब तो साक्षात देख रहे हैं. अस्पतालों में लाइनें हैं. श्मशानों में इंतज़ार है. चारों ओर पुकार है. मदद, मज़बूरी, ज़रूरत और दर्द का आलम है. कोई ज़वाबदेह नहीं.
और हमारे प्रधानमंत्री इस विकट समय में भी बंगाल में जाकर भारी भीड़ पर मुग्ध होते हैं. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ऑक्सीजन-अभाव को लेकर फ़ोन करते हैं तो पीएमओ से कहा जाता है कि पीएम साहब बंगाल में हैं, उन तक आपका संदेश पहुंच जाएगा. अज़ीब विडंबना है.
जब मिन्नतें कर कहा जा रहा है कि भीड़ इकट्ठा न होने दें. घरों से बाहर न निकलें. लेकिन ऐसे हालातों में देश के गृहमंत्री एवं प्रधानमंत्री दिन में अनेक रैलियों को संबोधित कर रहे हैं, जिनमें लाखों लोग पहुंच रहे हैं. लोगों की भीड़ को देखकर मोदी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं. इसी बात पर वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम क्रद्ध हुए और उन्हें कहना पड़ा-
‘’लगे हाथ श्मशान में भी सभा कर ही लीजिए. बड़ी भीड़ जुटेगी.’’
जो काम सरकार को करना चाहिए था, वो काम सामान्य लोग कर रहे हैं. अपने स्तर पर मदद का हाथ बढ़ाए खड़े हैं. दवाई, बेड, प्लाज़्मा आदि की पूर्ति के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं.
देश बहुत मुश्किल दौर में है. विकट समय है. नीरो बांसुरी बजा रहा है. और उसे डिफेंड करने के लिए गोदी मीडिया तैयार है. अंधभक्त, जिनके घर तक यह आग पहुंची है, उन्हें तो सबक मिल चुका. जो राहत में हैं वो अब भी मोहित हैं. यही इस देश की दुर्दशा है. अगर कोई और प्रधानमंत्री होता है तो अब तक इस्तीफ़े की नौबत आ जाती.